kiheriClub

ABOUT CLUB

Board Of Club

SN. NAME DESIGNATION CONTACT DETAILS
1
District Magistrate
Chairman (ex officio)
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2
Superintendent of Police
Senior Vice President (ex officio)
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3
MR. Kailash Brambh Soni
Vice President(2nd)
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4
Mr.Dr. Dinesh Dua
Vice President(3rd)
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5
Mr. Kuldeep Kumar Pahwa
General Secretary
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6
Mr. Joginder Singh Chhabra
Joint Secretary
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7
Mr.Vishal Tandon
Treasurer
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8
Mr. Sidharth Gupta
Vice President (Management)
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9
Mr. Praveen Kumar Gupta
Sports Secretary
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10
Mr. Dr. Sanjeev Bhalla
Member Executive
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11
Mr. Raju Agrawal
Member Executive
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12
Mr. Anurag Agarwal
Member Executive
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13
Mr. Amit Agarwal
Member Executive
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14
Mr. Kamal Gulati
Member Executive
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15
Mr. Diwas Gupta
Member Executive
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16
Mr. Sanjay Mahindra
Member Executive
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HISTORICAL PLACE OF LAKHIMPUR KHERI

GOLA GOKARANNATH

गोला गोकर्ण नाथ को "छोटी काशी" के नाम से भी जाना जाता है जो लखीमपुर खीरी से 35 किलोमीटर की दुरी पर स्थिति है यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है । लोगों की मान्यता है कि भगवान शिव को रावण (लंका के राजा) ने तपस्या से प्रसन्न कर वरदान मांगा था कि वे उसके साथ लंका चलें और हिमालय को हमेशा के लिए छोड़ दें । भगवान शिव इस शर्त पर जाने के लिए तैयार हो गए कि उन्हें किसी भी तरह से हिमालय में नहीं छोड़ा जाएगा। लंका के रास्ते में कहीं भी रखा जाए, अगर उसे कहीं भी रखा जाएगा, तो वह उस स्थान पर स्थापित हो जाएगा। रावण सहमत हो गया और भगवान को अपने सिर पर लेकर लंका की यात्रा शुरू कर दी। जब रावण गोला गोकर्ण नाथ (उस समय का गोलिहारा) पहुंचा तो उसे पेशाब करने की इच्छा (प्रकृति की पुकार) महसूस हुई। रावण ने एक चरवाहे को कुछ सोने के सिक्के दिए कि वह उसके लौटने तक भगवान शिव को अपने सिर पर रखे। चरवाहा भार सहन नहीं कर सका और उसने उसे जमीन पर रख दिया। रावण अपने सभी प्रयासों के बावजूद उसे उठाने में विफल रहा। उसने पूरे क्रोध में उसे अपने अंगूठे से अपने सिर पर दबा लिया। रावण के अंगूठे का निशान अभी भी शिवलिंग पर मौजूद है।

FROG TEMPLE

यह अनोखा मेंढक मंदिर लखीमपुर से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर लखीमपुर से 12 किलोमीटर दूर ओयल कस्बे में स्थित है। यह भारत में अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है जो “मंडूक तंत्र” पर आधारित है। इसका निर्माण ओयल राज्य (जिला लखीमपुर खीरी) के भूतपूर्व राजा ने 1860 से 1870 के बीच करवाया था। यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। यह मंदिर 18 x 25 वर्ग मीटर के क्षेत्र में एक बड़े मेंढक की पीठ पर बना है। मंदिर का निर्माण अष्टदल कमल के बीच में किया गया है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग “बाणासुर प्रति नर्मदेश्वर नर्मदा कुंड” से लाया गया था। मेंढक का मुख 2 x 1.5 x 1 घन मीटर उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में खुलता है और दूसरा द्वार दक्षिण दिशा में है। इस मंदिर की वास्तुकला "तंत्र विद्या" पर आधारित है।

SANKATA MATA MANDIR

संकटा देवी मंदिर पौराणिक ही नहीं बल्कि उन तीन शक्तिपीठों में से एक मानी जाती हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा स्थापित हैं, संकटा देवी शहर की कुलदेवी के रूप में रेलवे स्टेशन से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थापित हैं। माता लक्ष्मी की स्थापना होने के कारण ही इन्हीं के नाम पर बाद में शहर लक्ष्मीपुर बसा जो कालांतर में लखीमपुर हुआ। विशालकाय भव्य गुंबद, वृक्षों के विशाल झुरमुट के बीच लाउडस्पीकर से आती मंत्रोच्चार की ध्वनि दूर से ही कुलदेवी संकटा देवी के विराट दरबार की सूचना देती है। महाभारत के युद्ध के बाद जब श्री कृष्ण पशुपतिनाथ की यात्रा के लिए नेपाल जा रहे थे तो यहां के वनाच्छादित प्रदेश में रुक्‍मणी ने पूजा करने की इच्छा प्रकट की। इस पर भगवान कृष्ण ने यहां विशाल जलाशय के किनारे माता लक्ष्मी, माता सरस्वती तथा माता दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना की। माता लक्ष्मी कालांतर में संकट को टालने वाली, संकटा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

LILOUTINATH

शहर के निकट स्थित पौराणिक लिलौटी नाथ शिव मंदिर श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा का केंद्र है। मान्यता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के समय भगवान कृष्ण के मार्गदर्शन में यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। लोगों के मुताबिक मंदिर के कपाट खुलने से पहले आज भी शिवलिंग पूजित मिलता है। किवदंती है कि भोर होने से पहले अश्वत्थामा यहां शिव को जलाभिषेक करने आते हैं। वहीं कुछ लोग आल्हा-ऊदल द्वारा पूजा किए जाने की बात बताते हैं। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महेवा स्टेट के लोगों ने कराया। यहां श्रावण मास में मेला लगा रहता है। जुनई और कंडवा नदी के उद्गम स्थल के बीच स्थित पौराणिक महत्व वाले लिलौटीनाथ धाम में शिवलिंग पर आकृति बनी है। इसमें लोग मां पार्वती के स्वरूप को देखते हैं। खास यह है कि शिवलिंग दिन मे कई बार रंग बदलता है। मान्यता है कि सुबह के समय काला, दोपहर में भूरा और रात के समय हल्की सफेदी शिवलिंग को विशेष बनाती है

TEDHENATH

जिला मुख्यालय से करीब पचपन किमी की दूरी पर स्थित बाबा टेढ़ेनाथ का शिव मंदिर है। गोमती नदी के तट पर बना हुआ टेढ़ेनाथ काफी प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पर दूर-दराज से भक्तगण भक्ति भावना से आते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है और कांवड़ियों के जत्थे यहां जलाभिषेक और जयघोष करते देखे जा सकते हैं। सावन भर यहां चलने वाले मेले में भक्तों का तांता लगा रहता है। पौराणिक काल की बात है कि मंदिर परिसर में सात कांवड़िया आए। उस समय यहां का शिव¨लग लुढ़का हुआ था। कावड़ियों ने कहा अगर शिव¨लग रात भर में सीधा हो जाएगा तो गोला शिव मंदिर जलाभिषेक करने नहीं जाएंगे और इसी मंदिर में जलाभिषेक करेंगे। इसमें चार कांवड़ियों ने जलाभिषेक कर दिया और तीन ने नहीं किया। सुबह आधा शिव¨लग सीधा हुआ, शेष तीन के न करने पर आधा शिव¨लग टेढ़ा रहा। इस कारण उसका नाम बाबा टेढ़ेनाथ मंदिर कहा जाने लगा।

DUDHWAN NATNAL PARK

दुधवा नेशनल पार्क लखीमपुर खीरी से 85 किमी की दुरी पर स्थिति है । दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले में स्थित है. यह उत्तर प्रदेश का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है. यह बाघों और बारहसिंगा के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. इसके अलावा, यहां कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियां भी पाई जाती हैं. दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के बारे में कुछ खास बातेंः यह 490.3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. इसमें 190 वर्ग किलोमीटर का बफ़र ज़ोन भी है. यह खीरी और लखीमपुर ज़िलों में दुधवा टाइगर रिजर्व का हिस्सा है. इसे उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जैव विविधता वाला राष्ट्रीय उद्यान माना जाता है. 1 फ़रवरी, 1977 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था. यहां बाघ, तेंदुआ, दलदल हिरण, हर्पिड हारे, बंगाल फ़्लोरिकन, गैंडा, हाथी, सांभर, हॉग हिरण, चीतल, ककर, जंगली सुअर, रीसस बंदर, लंगूर, सुस्त भालू, नीला बैल, साही, औटर, कछुए, अजगर, मॉनिटर छिपकली, मोगर, घड़ियाल जैसी कई प्रजातियां पाई जाती हैं

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